भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शब्द जो हमने गढ़े हैं / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:24, 16 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश रंजक |संग्रह=मिट्टी बोलती है /...' के साथ नया पन्ना बनाया)
शब्द जो हमने गढ़े हैं
वे हमारी वेदनाओं से बड़े हैं
रची हैं जो पंक्तियाँ
उन यातनाओं में
जो कही जातीं नहीं
तमगी सभाओं में
बन्धु ! उनकी पीठ पर्वत पर
हमारे शब्द कर्मठ
देवदारों से खड़े हैं
शब्द जो हमने गढ़े हैं