भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भूले हुए शब्द की जगह / रघुवीर सहाय
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:26, 17 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रघुवीर सहाय |संग्रह=सीढ़ियों पर ध...' के साथ नया पन्ना बनाया)
कितनी धड़कती भीड़ों में से ले आया
याद करना प्रार्थना के उस गीत का उसकी ठीक स्वरलिपि में
जो पंक्ति आधी याद थी
उस पर घुमड़ कर खिल गई एक नई तितली
धूप और फूल सहित सम्पूर्ण ।
और एक शब्द भूले हुए ब्द की जगह रच गया जो
कवि देखता तो कहन हीं पाता कि वह उसका नहीं है ।