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टूट गया दिन / रमेश रंजक
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काँटे-सा टूट गया
दिन
नंगे पाँव में ।
राहों भर फैल गया
सुरमई बुरादा
इकलौत पंथी का
सूँघकर इरादा
नागिन-सी बैठ गई
पगडंडी
छाँव में ।
डूबने लगा धूमिल
गाँव का किनारा
टूट कर गिरा मन के
व्याम का सितारा
जल भर आया प्यासी
आँखों का
नाव में ।