भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

टूट गया दिन / रमेश रंजक

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:45, 19 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश रंजक |संग्रह=गीत विहग उतरा / रम...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

काँटे-सा टूट गया
दिन
नंगे पाँव में ।

राहों भर फैल गया
सुरमई बुरादा
इकलौत पंथी का
सूँघकर इरादा

नागिन-सी बैठ गई
पगडंडी
छाँव में ।

डूबने लगा धूमिल
गाँव का किनारा
टूट कर गिरा मन के
व्याम का सितारा

जल भर आया प्यासी
आँखों का
नाव में ।