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फूल की लालसा / जगन्नाथप्रसाद 'मिलिंद'
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विजय-वैजयंती माला के
बिखर चुके हों टूटे तार,
सूना गला देखकर पल-पल
तुझे चिढ़ाता हो संसार;
माँ, जिस दिन तू बिलख रही हो
खोकर अपना शुभ शृंगार,
लीन हो चुकी हो पीड़ा में
तेरी वीणा की झंकार;
उस दिन अकुलाकर, ठुकराकर
जीवन का सुख, हास-विलास,
ले बलिदान-धर्म की दीक्षा,
‘मर मिटने’ का ले सन्यास;
जो अपनी छाती छिदवालें
बनने को तव उर का हार,
उन फूलों का साथी बनकर
मैं भी निज जीवन दूँ वार!