भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शिल्पी है कोई कविता / नंदकिशोर आचार्य

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:11, 23 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नंदकिशोर आचार्य |संग्रह=केवल एक प...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

न जाने किस विधि से
वह खोलती है
कब से बन्द पड़े दरवाज़े
चीरती चोरबत्ती से
तहख़ानों, कोनों-अन्तरों के
                      अँधेरे मेरे
ढूँढ़ लेती है सब कुछ
जो नहीं मालूम था ख़ुद मुझे
                       होगा वहाँ
—जैसे वहाँ रख कर
वही गई हो भूल

शिल्पी है कोई
            कविता
मेरे अँधियारे कोनों को
गुमसुम तराशती
मुझे अपना रूप देती हुई ।

8 अप्रैल 2009