भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जाना बहुत जरूरी है / रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:48, 23 दिसम्बर 2011 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जीपन के इस सम्मेलन में आना तो मजबूरी है
आये हैं तो कुछ कह सुनकर जाना बहुत जरूरी है

जाने कितने स्वप्न संजोए,
जाने कितने रंग भरे।
 ख्वाब अधूरे हुए न पूरे,
ठाठ बाट रह गये धरे।

सरदी गरमी ,धूप छांव को , पाना तो मजबूरी है।
आये हैं तो कुछ कह सुनकर जाना बहुत जरूरी ह

जितना आगे कदम बढाया
मंजिल उतनी दूर हो गयी।
समरसता की कल्पनाऐं सब
थककर चकनाचूर हो गयीं।

धिसी पिटी सी रीत निभाना जन जन की मजबूरी है।
आये हैं तो कुछ कह सुनकर जाना बहुत जरूरी है
 
बचपन बीता गयी जवानी
सूरज ढलने वाला है
चिर यौवन को लिये हुये मन
सबका ही मतवाला है।

दरवाजों की दस्तक को , पढ पाना बहुत जरूरी है
आये हैं तो कुछ कह सुनकर जाना बहुत जरूरी है