भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जाना बहुत जरूरी है / रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:29, 24 दिसम्बर 2011 का अवतरण
जीवन के इस सम्मेलन में आना तो मज़बूरी है ।
आए हैं तो कुछ कह-सुनकर जाना बहुत ज़रूरी है ।।
जाने कितने स्वप्न सँजोए,
जाने कितने रंग भरे ।
ख़्वाब अधूरे हुए न पूरे,
ठाठ-बाट रह गए धरे ।
सरदी गरमी ,धूप छाँव को, पाना तो मज़बूरी है ।
आए हैं तो कुछ कह-सुनकर जाना बहुत ज़रूरी है ।।
जितना आगे क़दम बढ़ाया,
मंज़िल उतनी दूर हो गई ।
समरसता की कल्पनाएँ सब,
थककर चकनाचूर हो गईं ।
घिसी-पिटी-सी रीत निभाना जन-जन की मज़बूरी है ।
आए हैं तो कुछ कह-सुनकर जाना बहुत ज़रूरी है ।।
बचपन बीता गई जवानी,
सूरज ढलने वाला है ।
चिर यौवन को लिए हुए मन,
सबका ही मतवाला है ।
दरवाज़ों की दस्तक को, पढ़ पाना बहुत ज़रूरी है ।
आए हैं तो कुछ कह-सुनकर जाना बहुत ज़रूरी है ।।