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दूरियों के पास / रमेश रंजक

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दूरियों के पास
बैठे रहे हम-तुम
बेवज़ह ही जल-सतह
छू आदतन
एक संजीदा हवा-से
बहे हम-तुम

पास के
ज़िद्दी पहाड़ों की तरह
खुले हैं
आधी किवाड़ों की तरह

कथ्य सारा कह गए
अनकहे हम-तुम
ढहे हम-तुम
दीखते अनढहे हम-तुम
दूरियों के पास