भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आदर्श-प्रेम / जगन्नाथप्रसाद 'मिलिंद'
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:35, 26 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जगन्नाथप्रसाद 'मिलिंद' |संग्रह=जीव...' के साथ नया पन्ना बनाया)
कैसे कोमल कुसुम प्रेम का
रहे स्वर्ण की झोली में?
कैसे सहूँ भार वैभव का
प्रियतम की मृदु बोली में?
कैसे आज भिखारिन ‘राधा’
महलों का देखे सपना
सोते हो सुवर्ण-शय्या पर;
कैसे तुम्हें कहूँ ‘अपना’?
वेश बना धनहीन कृषक का,
सरल श्रमिक-से प्रेमी बन,
महलों का वैभव ठुकराकर
नंगें पाँवों, जीवनधन,
मेरी जीर्ण कुटी तक आओ
अधरों पर मुरली साधे;
मैं कह दू “मेरे मनमोहन!”
तुम कह दो “मेरी राधे!”