Last modified on 29 दिसम्बर 2011, at 10:18

व्याकुल विलाप / नाथूराम शर्मा 'शंकर'

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:18, 29 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= नाथूराम शर्मा 'शंकर' }} Category:पद <poem> ह...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हे प्रभु मेरी ओर निहार।
एक अविद्या का अटका है, पचरंगी परिवार,
मेल मिलाय एषणा तीनों, करती हैं कुविचार।
काट रहे कामादि कुचाली, धार कुकर्म कुठार,
जीवन-वृक्ष खसाया, सूखा पौरुष-पाल-पसार।
घेर रहे वैरी विषयों के, बन्धन रूप विकार,
लाद दिये सब ने पापों के, सिर पर भारी भार।
जो तू करता है पतितों का, अपनाकर उद्धार,
तो ‘शंकर’ मुझ पापी को भी, भव-सागर से तार।