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जीना और सीना / फ़रीद खान

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रोज़ सुबह उठ कर वह सबसे पहले,
अपनी पथरीली हो चुकी हथेली को देखती है,
और आँखों से लगा कर चूम लेती है ।
वह रोज़ उस शिलालेख में पढ़ना चाहती है अपना भविष्य ।

रोज़ प्राचीन होती जाती है वह, और इतिहास भी ।

उसका वर्तमान,
जीना है और सीना है ।