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केवल / समीर बरन नन्दी
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प्रेम में मगन रहना चाहता हूँ
फिर भी चिथड़ा ही रहता हू ।
नव जलद के सर पर हाथ फेर कर
प्यास मिटाता हूँ ।
उग नहीं रही आत्मा की
मिट्टी में कोई फ़सल
केवल टूटी हुई सुई
ढूँढ़ता रहता हूँ ।