भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नहीं बीतोगी तुम / विश्वनाथप्रसाद तिवारी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:11, 12 जनवरी 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विश्वनाथप्रसाद तिवारी |संग्रह=आख...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यह सदी बीत भी जाए
नहीं बीतोगी तुम

दिशा में और काल में
गूँजता रहेगा पक्षियों का संगीत

इसी तरह जैसे लाख-लाख वर्षों से

धरती ठण्डी होती रहेगी
और सूरज भी
और हम-तुम इसे गर्म करते रहेंगे
फिर-फिर

मुझमें बची रहोगी तुम
और तुम में मैं
जैसे धरती में बची रहती है
जन्म देने की शक्ति
और वृक्ष में बचा रहता है बीज
और बीज में जीवन
और जीवन में प्यार
और प्यार में जीवन

यह सदी बीत भी जाए
नहीं बीतोगी तुम ।