आज अली बिछुरो पिय पायो,
मिट गये सकल कलेश री!
सागर, ताल, नदी, नद-नारे, ग्राम, नगर, गिरि-कानन सारे,
एक न छोड़ो ढूँढ़फिरी मैं, भटकी देश-विदेश री!
मै बिरहिनि ऐसी बौरानी, सीखत डोली कपट कहानी,
घेर-घेर लोगन बहकाई, कर कोरे उपदेश री!
बीत गई सारी तरुणाई, पर प्यारे की थाँग न पाई,
खोजत-खोजत मो दुखिया के धौरे है गए केश री!
योगी एक अचानक आयो, जिन मेरो भरतार बतायो,
से ‘शंकर’ साँचा हितकारी, भ्रम-तम-पटल-दिनेश री!