भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इश्क़ करना तेरी फ़ितरत ही सही / मधुप मोहता
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:13, 8 फ़रवरी 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मधुप मोहता }} {{KKCatGhazal}} <poem> इश्क करना तेर...' के साथ नया पन्ना बनाया)
इश्क करना तेरी फितरत ही सही
सोच ले, इश्क इबादत भी नहीं
तुझे गुमान है प्यार है निभ जाएगा
मुझे तो इश्क की आदत भी नहीं
ये और बात है कि अब दिल नहीं लगता
द्दिल्लगी दिल की ज़रुरत भी नहीं
ये सच है कि तुझे भूल नहीं पाउँगा
दिल है, और इसे दर्द की हसरत भी नहीं
तेरी बेताब निगाहें, उनमे उतरता लहू
ये सच हैं, मगर सच ये हकीकत तो नहीं
मैं करीब से भी गुज़रा तूने जाने भी दिया
मुझे जीने न दे तुझ में ये शिद्दत भी नहीं