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जीने का वक़्त है / प्रेमशंकर रघुवंशी
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देह से
देह को जीते
जी चुके देह
अब मन से
मन को
जीने का वक़्त है
साथ-साथ
पार करनी होगी
काल की नदी
साथ-साथ
रचने होंगे
विश्वास के कूल हमें ।