जीने का वक़्त है / प्रेमशंकर रघुवंशी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:15, 13 फ़रवरी 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमशंकर रघुवंशी }} {{KKCatKavita‎}} <poem> देह ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

देह से
देह को जीते
जी चुके देह

अब मन से
मन को
जीने का वक़्त है

साथ-साथ
पार करनी होगी
काल की नदी

साथ-साथ
रचने होंगे
विश्वास के कूल हमें ।

इस पृष्ठ को बेहतर बनाने में मदद करें!

Keep track of this page and all changes to it.