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प्रणय का अनहद / प्रेमशंकर रघुवंशी
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लिख देना चाहता
एक कविता अपनी क़लम से
बदन पर तुम्हारे
उतार देना चाहता
मन में
सभी इन्द्रधनुष अपने
और भर देना चाहता
प्रणय का अनहद
रोम-रोम में तुम्हारे !!