भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तू / विजय कुमार सप्पत्ति
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:48, 7 मार्च 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय कुमार सप्पत्ति |संग्रह= }} {{KKCatKavit...' के साथ नया पन्ना बनाया)
मेरी दुनिया में जब मैं खामोश रहती हूँ ,
तो ,
मैं अक्सर सोचती हूँ,
कि
खुदा ने मेरे ख्वाबों को छोटा क्यों बनाया ……
एक ख्वाब की करवट बदलती हूँ तो;
तेरी मुस्कारती हुई आँखे नज़र आती है,
तेरी होठों की शरारत याद आती है,
तेरे बाजुओ की पनाह पुकारती है,
तेरी नाख़तम बातों की गूँज सुनाई देती है,
तेरी बेपनाह मोहब्बत याद आती है .........
तेरी क़समें ,तेरे वादें ,तेरे सपने ,तेरी हकीक़त ॥
तेरे जिस्म की खुशबु ,तेरा आना , तेरा जाना ॥
अल्लाह .....कितनी यादें है तेरी........
दूसरे ख्वाब की करवट बदली तो ,तू यहाँ नही था.....
खुदाया , ये कौन पराया मेरे पास लेटा है .
तू कहाँ चला गया....