भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फगुआ- ढोल बजा दे / अवनीश सिंह चौहान

Kavita Kosh से
Abnish (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:28, 18 मार्च 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान |संग्रह= }} {{KKCatNavgeet}} <Po...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हर कडुवाहट पर
जीवन की
आज अबीर लगा दे
फगुआ- ढोल बजा दे

तेज हुआ रवि
भागी ठिठुरन
शीत-उष्ण-सी
ऋतु की चितवन

अकड़ गई जो
टहनी मन की
उसको तनिक लचा दे

खोलें गाँठ
लगी जो छल की
रिहा करें हम
छवि निश्छल की

जलन मची अनबन की
उस पर
शीतल बैन लगा दे

साल नया है
पहला दिन है
मधुवन-गंध
अभी कमसिन है

सुनो, पपीहे
आज के दिन तुम
कोयल के सुर गा दे