भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कनक-कटोरा प्रातहीं, दधि घृत सु मिठाई / सूरदास

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:11, 25 सितम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूरदास }} कनक-कटोरा प्रातहीं, दधि घृत सु मिठाई ।<br> खेलत ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


कनक-कटोरा प्रातहीं, दधि घृत सु मिठाई ।
खेलत खात गिरावहीं, झगरत दोउ भाई ॥
अरस-परस चुटिया गहैं, बरजति है माई ।
महा ढीठ मानैं नहीं, कछु लहुर-बड़ाई ॥
हँसि कै बोली रोहिनी, जसुमति मुसुकाई ।
जगन्नाथ धरनीधरहिं, सूरज बलि जाई ॥

भावार्थ :-- सबेरे ही सोनेके कटोरेमें दही, मक्खन और उत्तम मिठाइयाँ लियेभाई (श्याम-बलराम) खेल रहे हैं, खाते जाते हैं, कुछ गिराते जाते हैं और परस्पर झगड़ते भी हैं । झपटकर एक-दूसरेकी चोटी पकड़ लेते हैं, मैया उन्हें मना करती है । माता रोहिणीने हँसकर कहा -`दोनों अत्यन्त ढीठ हैं, कुछ भी छोटे बड़ेका सम्बन्ध नहीं मानते' मैया यशोदा (यह सुनकर) मुसकरा रही हैं । सूरदासतो इन जगन्नाथश्यामसुन्दर और धरणीधर बलरामजीपर बलिहारी जाता है ।