भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कुछ शेर-4 / अर्श मलसियानी
Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:24, 24 मार्च 2012 का अवतरण
(1)
ऐ सितमगर<ref>जुल्म ढानेवाला</ref> मेरे इस हौसले की दाद दें,
सामने तेरे अगर फरियाद<ref>शिकायत, परिवाद, न्याय-याचना, सहायता के लिए पुकार</ref> कर लेता हूँ मैं।
(2)
नहीं है राज कोई राज दीदावर<ref>किसी चींज के गुण-दोष अच्छी तरह समझने वाले</ref> के लिये,
नकाब पर्दा नहीं शौक की नजर के लिये।
(3)
बला<ref>मुसीबत, विपत्ति, आस्मानी मुसीबत</ref> है कहर है आफत है फित्ना है कयामत है,
हसीनों की जवानी को, जवानी कौन कहता है?
(4)
मिल गया आखिर निशाने-मंजिले-मकसूद मगर,
अब यह रोना है कि शौके-जुस्तजू<ref> तलाश</ref> जाता रहा।
(5)
यह किसने कह दिया गुमराह कर देता है मैखाना<ref>शराबखाना</ref> ,
खुदा की फजल<ref>मेहरबानी, कृपा</ref> से इसके लिए मंदिर हैं, मस्जिद हैं।
शब्दार्थ
<references/>