भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उसकी तबियत खराब है / मदन गोपाल लढ़ा
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:22, 24 मार्च 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा |संग्रह=होना चाहता ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
आँखों में जलन है,
गले में खराश है।
हवा इतनी भारी है यहाँ
कि बोल फूटते नहीं
अन्दर ही अन्दर
फुसफुसा कर रह जाते हैं
उसके अधर।
सुनसान रात है
मगर नींद गायब है,
अंधेरा इतना घना है
कि दूर तक नहीं दिखता
कहीं कोई सपना।
दांत भिंचते भी है कभी-कभी
मगर न जाने क्यों
मुट्ठीयां तानने से पहले
ढीले पड़ जाते हैं हाथ।
लगता है
उसकी तबीयत खराब है
इन दिनों।