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ख्वाहिशें ऐसी / मदन गोपाल लढ़ा
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माँ-बाबूजी को करवानी है
चारों धामों की यात्रा
बहुत रह लिए किराए पर
छोटा ही सही
खरीदना है
खुद का घर
भतीजी के लिए तलाशना है
अच्छा-सा वर
मिडल तक क्रमोन्नत करवाना है
गाँव का प्राइमरी स्कूल
बेटे को बनाना है इंजीनियर
बीवी को हवाई जहाज में घुमाना है
कुछ कविताएँ भी लिखनी हैं अभी।