भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चलन से बाहर / मदन गोपाल लढ़ा

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:54, 24 मार्च 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा |संग्रह=होना चाहता ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


झुलसा हूँ
सूर्यनारायण की
तीक्ष्ण निगाहों से
भटका हूँ
आग उगलती लू में।

मैं मरूपुत्र
मरूभौम की
रेत का कण हूँ
माँ !
बरसा दो
स्नेह-जल