भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अंतस में बसा है / मदन गोपाल लढ़ा
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:29, 25 मार्च 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा |संग्रह=होना चाहता ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
तोप के गोलों से
धराशाई हो गई छतें
घुटनें टेक दिए दीवारों ने
जमींदोज हो गए
जल-कुण्ड
खंडहर में बदल गया
समूचा गाँव
मगर यहाँ से कोसों दूर
ऐसे लोग भी हैं
जिनके अंतस में
आज भी आबाद है
वही
भरा-पूरा गाँव।