भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरा साया / आशीष जोग
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:46, 5 अप्रैल 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आशीष जोग |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> दिन भर ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
दिन भर मेरे आस-पास खेलता रहा मेरा साया,
शाम तक मुझसे भी बड़ा हो गया मेरा साया |
मैं समझता था कि मेरा दोस्त है मेरा साया,
फिर जाना कि है ग़ुलाम रौशनी का मेरा साया |
तरस आता है कितना मजबूर है मेरा साया,
पास रह कर भी कितना दूर है मेरा साया |
बचपन में शरीर था मेरे जैसा ही मेरा साया,
मेरे साथ झुक के अब चलता है मेरा साया |
दिन भर न छोड़े है मुझे एक पल मेरा साया,
जाने कहाँ रात को गुम हो जाए है मेरा साया