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अधूरा हैं सफ़र इस ज़िन्दगी का / सिया सचदेव
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अधूरा हैं सफ़र इस ज़िन्दगी का
कोई अवसर नहीं है वापसी का
मेरी आँखों से हो बरसात इतनी
समन्दर सूख जाये तश्नगी का
इसी इक आरज़ू में उम्र गुज़री
कोई तो पल मयस्सर हो ख़ुशी का
मुसीबत का सबब ईमानदारी
तमाशा बन गया है ज़िन्दगी का
तेरी यादों के जंगल में खड़ी हूँ
कोई धब्बा नहीं है तीरगी का
रफू करती हूँ इतने चाक दिल के
हुनर ख़ुद आ गया बखियागरी का
चराग़े दिल जलती हूँ वहां मैं
जहां दम टूटता हैं रौशनी का
सिया से कोई क्यूं नाराज़ होगा
कभी भी दिल दुखाया हैं किसी का ?