भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हजारो गम में रहेले माई / मनोज भावुक

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:26, 8 अप्रैल 2012 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें

हजारो गम में रहेले माई
तबो ना कुछुओ कहेले माई

हमार बबुआ फरे-फुलाये
इहे त मंतर पढेले माई

हमार कपडा, कलम आ कॉपी
सँइत-सँइत के धरेले माई

बनल रहे घर, बँटे ना आँगन
एही से सभकर सहेले माई

रहे सलामत चिराग घर के
इहे दुआ बस करेले माई

बढे उदासी हिया में जब-जब
बहुत-बहुत मन परेले माई

नजर के काँटा कहेलीं रउरा
जिगर के टुकडा कहेले माई

'मनोज' हमरा हिया में हरदम
खुदा के जइसन रहेले माई