भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उठेगी तुम्हारी नज़र धीरे-धीरे / मजरूह सुल्तानपुरी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:46, 20 अप्रैल 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मजरूह सुल्तानपुरी }} {{KKCatGeet}} <poem> उठेगी...' के साथ नया पन्ना बनाया)
उठेगी तुम्हारी नज़र धीरे-धीरे
मुहब्बत करेगी असर धीरे-धीरे
ये माना ख़लिश है अभी हल्की-हल्की
ख़बर भी नहीं है तुम को मेरे दर्द-ए-दिल की
कहबर हो रहेगी मगर धीरे-धीरे
उठेगी तुम्हारी नज़र ...
मिलेगा जो कोई हसीं चुपके-चुपके
मेरी याद आ जाएगी वहीं चुपके-चुपके
सताएगा दर्द-ए-जिगर धीरे-धीरे
उठेगी तुम्हारी नज़र ...
सुलगते हैं कब से इसी चाह में हम
पड़े हैं निगाहें डाले इसी राह में हम
कि आओगे तुम भी इधर धीरे-धीरे
उठेगी तुम्हारी नज़र ...
(फ़िल्म -- ’एक राज़’ - 1963)