भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हौसला है तो वार कर / राजकुमार कुंभज
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:02, 18 मई 2012 का अवतरण
हरा है, भरा है
दर्द, सिर से कंधों तक
कंधों से घुटनों तक खरा है
हौसला है तो वार कर
प्रतिकार कर, धिक्कार कर
मुश्किलों को पार कर
बकबक मत बेकार कर
वर्ना यह ज़िन्दगी
ज़िन्दगी भर बर्दाश्त कर
चीत्कार मत बार-बार कर
और नहीं तो, प्यारे मियाँ आवारा !
घुट-घुटकर मर
हरा है, भरा है
दर्द, सिर से कंधों तक,
कंधों से घुटनों तक है
हौसला है तो वार कर