भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दुनिया मान लिया है दिल को / पुरुषोत्तम प्रतीक

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:29, 29 मई 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पुरुषोत्तम प्रतीक |संग्रह=पेड़ नह...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दुनिया मान लिया है दिल को
कैसे पहचानें मंज़िल को

कैसे हम दिल को समझाते
ये समझाना था जाहिल को

दिल में पूरा नगर बसा है
दिल में ही ढूँढो क़ातिल को

गाँव बहें या फ़सलें सूखें
बगुले ढूँढ़ेंगे साहिल को

क़ाबिल होकर पछताओगे
दाद मिलेगी नाक़ाबिल को

हमसे कब तिल भी बन पाया
तुमने ताड़ बनाया तिल को

साँप समाए हैं संतों में
सूँघ लिया सारी महफ़िल को