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बीते यह रात उससे ही पहले / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
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निशि ना पोहाते जीवन ज्वालाइया याओ प्रिया तोमार अनल दिया
बीते ये रात उससे ही पहले दो तुम जला जीवन-प्रदीप,
ओ ! मेरी प्रिया अगिन छुआ ।
लिए हुए दीप शिखा आओगी तुम, सोच यही
देख रहा मैं तेरी राह,
दोगी जला तुम मेरा ये दीप,
कर दोगी दूर अँधेरा ।
मेरी प्रिया मेरी प्रिया !
लाओ तो अपना अगिन-दिया।
उसकी ही आस, उसकी ही आस—
आशा का वो ही तो घेरा ।।
मूल बांगला से अनुवाद : प्रयाग शुक्ल
('गीत पंचशती' में 'प्रकृति' के अन्तर्गत 42 वीं गीत-संख्या के रूप में संकलित)