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आज कि ताहार बारता पेल रे किसलय
किसलय ने पाया क्या उसका संदेश ।
दूर-दूर सुर गूँजा किसका ये आज ।।
कैसी ये लय ।
गगन गगन होती है किसकी ये जय ।।
चम्पा की कलियों की शिखा जहाँ जलती,
झिल्ली-झंकार जहाँ उठती सुरमय ।।
आओ कवि, बंशी लो, पहनो ये माल,
गान-गान हो ले विनिमय ।।
मूल बांगला से अनुवाद : प्रयाग शुक्ल
('गीत पंचशती' में 'प्रकृति' के अन्तर्गत 74 वीं गीत-संख्या के रूप में संकलित)