भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
किसलय ने पाया क्या उसका संदेश / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:35, 3 जून 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=रवीन्द्रनाथ ठाकुर |संग्रह=निरु...' के साथ नया पन्ना बनाया)
|
आज कि ताहार बारता पेल रे किसलय
किसलय ने पाया क्या उसका संदेश ।
दूर-दूर सुर गूँजा किसका ये आज ।।
कैसी ये लय ।
गगन गगन होती है किसकी ये जय ।।
चम्पा की कलियों की शिखा जहाँ जलती,
झिल्ली-झंकार जहाँ उठती सुरमय ।।
आओ कवि, बंशी लो, पहनो ये माल,
गान-गान हो ले विनिमय ।।
मूल बांगला से अनुवाद : प्रयाग शुक्ल
('गीत पंचशती' में 'प्रकृति' के अन्तर्गत 74 वीं गीत-संख्या के रूप में संकलित)