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हे नवीना / रवीन्द्रनाथ ठाकुर

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हे नवीना,
प्रतिदिनेर पथेर धूलाय जाय न चीना ।

हे नवीना,
प्रतिदिन के पथ की ये धूल
उसमें ही छिप जाती ना !
उठूँ अरे, जागूँ जब देखूँ ये बस,
स्वर्णिम-से मेघ वहीं तुम भी हो ना ।।
स्वप्नों में आती हो, कौतुक जगाती ।
किन अलका<ref>'मेघदूत' की अलकापुरी</ref>-फूलों को केशों सजाती
किस सुर में कैसी बजाती ये बीना ।।

मूल बांगला से अनुवाद : प्रयाग शुक्ल

('गीत वितान' में 'प्रेम' के अन्तर्गत 97 वीं गीत-संख्या के रूप में संकलित)

शब्दार्थ
<references/>