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आज बादल-गगन, गोधूली-लगन / रवीन्द्रनाथ ठाकुर

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आजि गोधूलि लगने एइ बादल-गगने

आज बादल-गगन, गोधूली-लगन
आई उसके ही चरणों की ध्वनि ।
कह रहा मन यही आज 'आएगा वह',
यही कहता है मन हर पल ।।
आँखों छाई ख़ुशी, हैं उठीं वे पुलक,
उनमें भर आया देखो ये जल ।।
लाया लाया पवन, उसका कैसा परस,
उड़ता-उड़ता दिखा उत्तरीय ।
मन है कहता यही, कहती रजनीगंधा,
आज 'आएगा वह', निर्मल ।।
हुई आकुल बड़ी मालती की लता,
हुई पूरी नहीं उसके मन की कथा ।।
बतकही जाने बन में ये कैसी चली,
आज किसकी मिली है ख़बर ।
दिग्वधुओं के आँचल में कंपन हुआ,
कह रहा मन यही, आज 'आएगा वह'
आज उसकी ही है हलचल ।।


मूल बांगला से अनुवाद : प्रयाग शुक्ल

('गीत पंचशती' में 'प्रेम' के अन्तर्गत 114 वीं गीत-संख्या के रूप में संकलित)