भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुनु री ग्वारि ! कहौं इक बात / सूरदास

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:50, 2 अक्टूबर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूरदास }} राग गौरी सुनु री ग्वारि ! कहौं इक बात ।<br> मेरी ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राग गौरी

सुनु री ग्वारि ! कहौं इक बात ।
मेरी सौं तुम याहि मारियौ, जबहीं पावौ घात ॥
अब मैं याहि जकरि बाँधौंगी, बहुतै मोहि खिझायौ ।
साटिनि मारि करौ पहुनाई, चितवत कान्ह डरायौ ॥
अजहूँ मानि, कह्यौ करि मेरौ, घर-घर तू जनि जाहि ।
सूर स्याम कह्यौ, कहूँ न जैहौं, माता मुख तन चाहि ॥

भावार्थ :-- (व्रजरानी ने कहा-) `गोपी! सुन, तुझसे एक बात कहती हूँ । तुम सबको मेरी शपथ है- जब भी अवसर पाओ, तुम इसे (अवश्य) मारना । इसने मुझे बहुत चिढ़ाया है , अब मैं इसे जकड़कर बाँध रखूँगी । छड़ियों से मारकर इसका आतिथ्य करूँगी ।' (यों कहकर) श्रीकृष्ण की ओर देखते ही कृष्णचंद्र डर गये । माता ने (उनसे कहा) `अब भी मान जा, मेरा कहना कर, तू घर घर मत जाया कर!' सूरदास जी कहते हैं कि माता के मुख की ओर देखकर श्यामसुनदर बोले -`मैया ! मैं कहीं नहीं जाऊँगा ।'