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महानगरीय कवि / अरविन्द श्रीवास्तव

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गाँव-क़स्बे और जनपद का कोई कवि
महानगरीय कवि के दर्शन करने को
लम्बी-यात्रा तय करता है
स्वांतः सुख-सा महसूसता है
धन्य पाता है स्वयं को

जबकि
महानगरीय कवि
गाँव-क़स्बे और जनपद
पहुँचने के एवज़ में
चाहता है टानना
मोटी रक़में
गर्म-शाल !