भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पेड़ खड़े रहे / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:24, 16 जुलाई 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओम पुरोहित ‘कागद’ |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पन्ना बनाया)
धरती से थी
प्रीत अथाह
इसी लिए
पेड़ खड़े रहे ।
कितनी ही आईं
तेज आँधियाँ
टूटे-झुके नहीं
पेड़ अड़े रहे ।
खूब तपा सूरज
नहीं बरसा पानी
बाहर से सूखे
भीतर से हरे
पेड़ पड़े रहे !