भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बोलो / महेश वर्मा
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:44, 20 जुलाई 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेश वर्मा |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> हम उ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
हम उससे कम चुप्पी वास्तव में अपने लिए चाहते है जितने की इच्छा करते हम दिखाई देते हैं ।
कोलाहल हमें मृत्यु के विचार से दूर रखता है ।
सच तो ये है कि चुप्पी को न वस्तुओं की ज़रूरत होती है न जंतुओं की ।
लंबा एकांत पहले हमारे सपनों पर अन्धकार की तरह उतर आता है फिर हमें मदद करता है कि हम अपना चेहरा याद रखने की ज़रूरत ही न समझें ।
कई बार बे-ज़रूरत भी कुछ बोल पड़ना चाहिए, भले ही इससे हमारी छवि थोड़ी बिगड़ती हो ।