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तुम आए, तुम चले गए / अज्ञेय
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तुम आये, तुम चले गये! नाता जोड़ा था, तोड़ गये।
हे अबाध! जाते अबाध सूनापन मुझ को छोड़ गये।
अशुभ विषैली छायाओं से, अब मैं जीवन भरता हूँ-
नीच अजान नहीं हूँ, प्रियतम! सूनेपन से डरता हूँ्!
मुलतान जेल, 5 दिसम्बर, 1933