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यह कली / अज्ञेय

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     यह कली
     झुटपुट अँधेरे में पली थी देहात की गली में;
     भोली-भली नगर के राज-पथ, दिपते
     प्रकाश में गयी छली।

     झरी नहीं, बही कहीं
     तो निकली नहीं,
     लहर कहाँ? भँवर फँसी।
     काल डँसी गयी मली-यह कली।

नयी दिल्ली (एम्बेसी रेस्तराँ में), 18 सितम्बर, 1958