भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सागर मुद्रा - 13 / अज्ञेय
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:02, 9 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=सागर-मुद्रा / अज्ञ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
ओ सागर
ओ मेरी धमनियों की आग,
मेरे लहू के स्पन्दित राज-रोग,
सागर
ओ महाकाल
ओ जीवन
दिग्विहीन आगम,
प्रत्यागम निरायाम,
द्वारहीन
निर्गमन,
सागर, ओ जीवन-लय, ओ स्पन्द!
ओ सदा सुने जाते मौन,
ओ कभी न सुने गये विराट् विस्फोट
निःशेष :
ओ मेघ, ओ ज्वार, ओ बीज,
ओ विदाध, ओ रावण, ओ कीट-दंश!
ओ रविचुम्बी गरुड़, ओ हारिल,
ओ आँगन के नृत्य-रत मयूर!
ओ अहल्या के राम,
ओ सागर!
लहर पर लहर पर लहर पर लहर...
फरवरी, 1971