भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कोहरे में भूज / अज्ञेय
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:41, 9 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=सागर-मुद्रा / अज्ञ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
कोहरे में नम, सिहरा
खड़ा इकहरा
उजला तन
भूज का।
बहुत सालती रहती है क्या
परदेशी की याद, यक्षिणी?
बर्कले (कैलिफ़ोर्निया), दिसम्बर, 1969