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महावृक्ष के नीचे (दूसरा वाचन) / अज्ञेय
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वन में महावृक्ष के नीचे खड़े
मैं ने सुनी अपने दिल की धड़कन।
फिर मैं चल पड़ा।
पेड़ वहीं धारा की कोहनी से घिरा
रह गया खड़ा।
जीवन : वह धनी है, धुनी है
अपने अनुपात गढ़ता है।
हम : हमारे बीच जो गुनी है
उन्हें अर्थवती शोभा से मढ़ता है।
ग्रोस पेर्टहोल्ज (आस्ट्रिया), 15 मई, 1976