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वन-मिथक / अज्ञेय

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 महावन में बिखरे हैं जाति-धन पुराण।
सीमा-शिखरों के गढ़ उन्हें मढ़ते रहे हैं
ऐश्वर्य से और अभी पेड़ हैं
स्वयं ध्वस्त गौरव-अस्त।
फिर भी, फिर भी
नगर-घिरी वन-सीमा के ऊपर
मँडराते रहते हैं
आदिम प्राण...

मई, 1976