भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जो औचक कहा गया / अज्ञेय
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:16, 11 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=सागर-मुद्रा / अज्ञ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
मैं ने जो नहीं कहा
वह मेरा अपना रहा
रहस्य रहा :
अपनी इस निधि, अपने संयम पर
मैं ने बार-बार अभिमान किया।
पर आज हार की तीक्ष्ण धार
है साल रही : मेरा रहस्य
उतना ही रक्षित है
उतना-भर मेरा रहा
कि जितना किसी अरक्षित क्षण में
तुम ने मुझ से कहला लिया!
जो औचक कहा गया, वह बचा रहा,
जो जतन सँजोया, चला गया।
यह क्या मैं तुम से, या जीवन से
या अपने से छला गया?
नयी दिल्ली, 28 जून, 1968