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लांघना मुश्किल है / संगीता गुप्ता

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लांघना मुश्किल है
हमारे बीच पसरे
सन्नाटे को
पर असंभव भी तो नहीं
कभी पुकार कर देखना
या फिर
अपने मौन में ही
सुन सको
तो सुनना
मेरी धड़कन
  
जानती हूँ
तुम्हारी आंखों की प्यास
गहरी है
पर मेरे
आंसुओं की नदी भी
कभी कहां सूखती है
पलकें झपकाओं तो जरा
मेरी नदी
वहीं कहीं बहती है
तुमने सौंपा था
चुपचाप, सबसे चुरा
एक दहकती दोपहर
और में
अपनी कविताएं रोप आई थी
तुम्हारे धधकते मन में
जरा अपने में झांको
देखना
वहां अग्निफूल खिल रहे होंगे
इतनी बांझ भी तो नहीं थीं
मेरी कविताएं
एक पल
जो कभी ठिठकों तो
अपने पांव देखना
मेरे स्पर्श के गुलमोहर
वहां अब भी दहकते होंगे
बर्फ-सी सुन्न
उंगलियां
उन पर रखना कभी
और महसूसना
मेरा होना
सर से पांव तक