ऊधव के उपदेश सुनो ब्रज नागरी / नंददास
ऊधव को उपदेश सुनो ब्रज -नागरी .
रूप सील लावण्य सबै गुन आगरी .
प्रेम-धुजा रस रुपिनी, उपजावत सुख पुंज .
सुन्दरस्याम विलासिनी, नववृन्दावन कुंज .
सुनो ब्रज -नागरी .
कहन स्याम संदेस एक मैं तुम पे आयौ .
कहन समै संकेत कहूँ अवसर नहिं पायौ .
सोचत हीं मन में रह्यों,कब पाऊँ इक ठाऊँ.
कहि संदेस नंदलाल को, बहुरि मधुपुरी जाऊँ.
सुनो ब्रज -नागरी .
ताहि छिन इक भँवर कहूँते तहँ आयौ .
ब्रजवनितन के पुंज माहि,गुंजत छबि छायौ .
चढ्यो चहत पग पगनि पर,अरुन कमल दल जानि.
मनु मधुकर उधो भयो ,प्रथमहिं प्रगट्यो आनि.
मधुप को भेष धरि .
कोऊ कहे रे मधुप भेष उनही कौ धारयौ .
स्याम पीत गुंजार बैन किंकिनि झनकारयौ .
वा पुर गोरस चोरिकै, फिरि आयो यहि देस .
इनको जनि मानहुं कोऊ, कपटी इनको भेस.
चोरि जनि जय कछु .
कोऊ कहे रे मधुप कहा तू रस को जाने .
बहुत कुसुम पै बैठ सबै आपन सम माने .
आपन सम हमकों कियो चाहत है मति मंद .
दुबिध ज्ञान उपजायके, दुखित प्रेम आनन्द .
कपट के छंद सों .
कोऊ कहे रे मधुप प्रेम षट्पद पसु देख्यो .
अबलौं यहि ब्रजदेस माहि कोऊ नहि विसेख्यो .
द्वै सिंग आनन ऊपर ते, कारो पिरो गात .
खल अमृत सम मानहीं अमृत देखि डरात .
बादि यह रसिकता .
कोऊ कहे रे मधुप ग्यान उलटो ले आयौ .
मुक्त परे जे फेरि तिन्हें पुनि करम बतायो .
वेड उपनिषद सर जे मोहन गुन गहि लेत .
तिनके आतम सुद्ध करि,फिरि फिरि संथा देत.
जोग चटसार मैं .
कोऊ कहे रे मधुप तुम्हें लज्जा नहि आवे .
सखा तुम्हारे स्याम कूबरी नाथ कहावे.
यह नीची पदवी हुती गोपीनाथ कहाय .
अब जदुकुल पावन भयौ,दासी जूठन खाय .
मरत कह बोल को .
धन्य धन्य जे लोग भजत हरि को जो ऐसे .
अरु जो पारस प्रेम बिना पावत कोउ कैसे .
मेरे या लघु ग्यान को,उर मद कह्यो उपाध.
अब जान्यौ ब्रज प्रेम को,लहत न आधौ आध.
वृथा स्रम करि थक .
करुनामई रसिकता है तुम्हरी सब झूठी .
जब ही लौं नहि लखौ तबहि लौ बांधी मूठी .
मैं जान्यौ ब्रज जाय कै, तुम्हरो निर्दय रूप .
जो तुम्हरे अवलम्ब हीं, वाकौ मेलौ कूप .
कौन यह धर्म है .
पुनि पुनि कहैं जु जाय चलो वृन्दावन रहिये .
प्रेम पुंज कौ प्रेम जाय गोपिन संग लहिये .
और काम सब छाँरि कै,उन लोगन सुख देहु .
नातरु टूट्यो जात है अब हि नेह सनेहू .
करौगे तो कहा .
सुनत सखा के बैन नैन भरि आये दोउ .
विवस प्रेम आवेस रही नाहीं सुधि कोऊ.
रोम रोम प्रति गोपिका,ह्वै रहि सांवर गात.
कल्प तरोरुह सांवरो ब्रजवनिता भईं पात .
उलहि अंग अंग तें .