भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

राति-द्यौस कटक सजे / घनानंद

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:25, 27 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=घनानंद }} <kavitt> राति -द्यौस कटक सचे ह...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

<kavitt>

राति -द्यौस कटक सचे ही रहे, दहै दुख

कहा कहौं गति या वियोग बजमार की .

लियो घेरि औचक अकेली कै बिचारो जीव,

कछु न बसाति यों उपाव बलहारे की .

जान प्यारे, लागौ न गुहार तौ जुहार करि,

जूझ कै निकसि टेक गहै पनधारे की .

हेत-खेत धूरि चूर चूर ह्वै मिलैगी,तब

चलैंगी कहानी ‘घनआनन्द’ तिहारे की